भले ही आज का ज़माना डिजिटल हो गया है और सरकारी सेवाएं ऑनलाइन उपलब्ध है लेकिन अभी भी डिजिटलकरण के बाद भी राशन कार्ड जैसी मूलभूत सेवाएं ऑनलाइन होने के बाद भी लोगों को सरकारी दफ्तरों के चकर काटना पड़ रहा है। सरकारी दफ्तरों के चकर कटाने के बाद पता चलता है कि राशन कार्ड अभी नहीं बन सकता क्योंकि स्लॉट खाली नहीं है।
गाँव के मजबूर-अनपढ़ लोगों को समझ ही नहीं आता कि स्लॉट खाली नहीं है का मतलब क्या है, दरसल ग्राम सचिव और ग्राम प्रधान की जिम्मेदारी होती है कि वो समय – समय पर अपने ग्राम सभा में रह रहे लोगों की सूची प्रदान करें जैसे कि किसी की शादी हुई हो, वो ग्राम सभा से चली गई हो या आई हो, किसी का निधन हो गया हो, विस्थापित हो गए हों आदि लोगों का नाम राशन कार्ड सूची में जोड़ने या हटाने का फैसला किया जाता है जिसके लिए बाकायदा हर ग्राम सभा में मीटिंग रखी जाती है।
यह ग्राम प्रधान के साथ- साथ ग्राम सचिव की लापरवाही है कि वह ये काम समय से नहीं करते हैं, जब तक उच्च अस्तर जैसे जिला या राजधानी कार्यालय से आदेश नहीं आता तब तक ग्राम सचिव अपने कार्य का सही ढंग से निर्वाहन करने के बजाय एक दूसरे को जिम्मेदार ठहराते रहते हैं। इस बीच आम जनता परेशान रहती है, ऐसी सेवाओं को ऑनलाइन करने का क्या फायदा है जब लोगों का काम ही नहीं होता और यहाँ तक कि ऑनलाइन आवेदन के बाद भी सरकारी दफ्तरों के चकर कटाने पड़ते हैं।
यह शासन और प्रशासन दोनों की लापरवाही है और जब तक चुनाव नज़दीक नहीं आजाता तब तक ऐसा ताल-मटोल चलता रहता है। हमारी बात ऐसे ही एक महिला से हुई जो अपने बच्चों के साथ दिल्ली में रह रही थी और करीब 4 वर्ष पहले दिल्ली छोड़ कर अपने स्थायी घर वापस आ गई।
महिला के पास दिल्ली का राशन कार्ड था, महिला ने सरकारी दफ्तर में राशन कार्ड ट्रांसफर करवाने का अनुरोध किया तो कहा गया कि पहले दिल्ली का राशन कार्ड सरेंडर करना होगा, उसके बाद ही उत्तर प्रदेश का राशन कार्ड बन पाएगा। महिला ने दिल्ली प्रदेश का राशन कार्ड सरेंडर कर उत्तर प्रदेश के राशन कार्ड के आवेदन किया तो पता चला कि राशन कार्ड नहीं बन सकता क्योंकि अभी स्लॉट खाली नहीं है।
सरकार का फ़र्ज़ बनता है कि वह लोगों के जन कल्याण और उनके हक़ की सेवाएं मुहैया कराये कितना प्रशासन कही न कहीं सरकार को नीचा दिखने के लिए आए दिन ऐसा कृत करते रहते हैं ताकि चुनी हुई सरकार की छवि खराब हो और जनता का विश्वास सरकार पर से उठ जाये।